Sunday, March 2, 2008

लघुकथा की रचना प्रक्रिया पर एक महतवपूर्ण लेख

लघुकथा लेखक सुकेश साहनी ने लघुकथा की रचना प्रक्रिया को लिपिबद्ध किया है। रचनातमक लेखन के विद्यार्थी होने के नाते यह आपके लिए एक महतवपूर्ण आलेख है। साहनी अपनी लघुकथाएं और आलेख कथाकार पर देते हैं। लघुकथा रचना प्रक्रिया में वे विस्तार से कहानी के जन्मने और उसके गढ़े जाने की चर्चा करते हैं तथा उदाहरणों से विश्‍लेषण भी करते हैं।

लघुकथा के संदर्भ में भी जीवन–यात्रा के विभिन्न पल छोटे–छोटे एहसासों के रूप में दिलोदिमाग पर छा जाते हैं। अनूकूल परिस्थितियाँ पाते ही जब इनमें साहित्यिक रूप के साथ जीवन का गर्म लहू दौड़ने लगता है, जब उसके साथ उससे सम्बंधित कुछ विचार व्यवस्थित होकर घुल–मिल जाते है, तभी लघुकथा कागज़ पर उतार पाता हूँ।

इसी प्रकार

स्पष्ट है कि कथा की विषयवस्तु, लेखकीय दृष्टि एवं उससे संबंधित विचार मिलकर मुकम्मल रचना का रूप लेते हैं । मैंने यहाँ जानबूझकर रचना अथवा कथा शब्द का प्रयोग किया है ;क्योंकि उपयु‍र्क्त कथन साहित्य की किसी भी विधा के लिए प्रयोग किया जा सकता है। अधिकतर रचनाओं की विषयवस्तु हमें जीवन की हलचल से मिलती है। देखने में आ रहा है कि आज लिखी जा रही बहुत–सी लघुकथाओं में सिर्फ़ विषयवस्तु, घटना या एहसास का ब्योरा मात्र होता है। लघुकथा का भाग बनने के लिए ज़रूरी है कि इस घटना, एहसास या विचार को दिशा और दृष्टि मिले, लेखक उस पर मनन करे, उससे संबंधित विचार भी उसमें जन्म लें।

इन पंकितयों को पढ़कर आपको भीष्‍‍म साहनी लिखित पाठ 'आज के अतीत से' याद आ रहा होगा जिसे आप प्रथम वर्ष में पढ़ चुके हैं जो दरअसल उनकी आत्‍मकथा का वह अंश है जहॉं वे 'तमस' की रचना प्रक्रिया का विश्‍लेषण करते हैं। ध्‍यान दें कि भीष्‍म भी बताते हैं कि अनूभूत को प्रमाणिक बनाने के लिए  उसे फिर से गढ़ना पड़ता है और यही सुकेश भी कहते हैं-

इस लघुकथा की मूल घटना से तुलना करें तो पता चलता है कि रचना–प्रक्रिया के दौरान इसमें घटना–स्थल, क्रम, पात्र आदि बिल्कुल बदल गए हैं। ऐसा लघुकथा के लिए अनिवार्य आकारगत लघुता एवं समापन बिन्दु को ध्यान में रखते हुए अधिक प्रभावी प्रस्तुति के लिए किया गया है ।