इंसान हो या वातावरण, जो दिखता है उससे ज्यादा अनदिखा ही रहता है। अच्छा लेखक दिख रहे से ज्यादा को देख सकने में सक्षम होता है, ऐसा इसलिए होता है कि वह सामने दिख रहे से ज्यादा देखने में इच्छेक होता है। जो दिखता है वह तो आईसबर्ग की चोटी भर है इसलिए हमें सामने की चमक दमक से परे जाकर अनुभव बटोरने में उत्साह दिखाना चाहिए-
इसी उद्देश्य से आपको कल का दूसरा ऐसाइनमेंट दिया गया था। यानि-
कॉलेज की इमारत के पीछे सामान्यत- न दिखने वाले हिस्सों का समूह में भ्रमण करना तथा इस अनुभव का संक्षेप में वर्णन करना या स्क्रेपबुक में एंट्री करना।
हम यह गतिविधि भौतिक जगत से शुरू कर रहे हैं, यानि हम इमारत, पुस्तकालय की शेल्फों, कैंटीन के पीछे या चारदीवारी के साथ साथ घूमकर छपे-ढके को देखने को कह रहे हैं पर असल उद्देश्य आ लोगों में यह रूचि पैदा करना है कि आप अपने अनुभवों को छपे-ढके से बटोरने की ओर उन्मुख हों। ध्यान दें कि अंतत: आप मनुष्य के भी छुपे-ढके पक्ष में झांकने का साहस व इच्छा पाएंगे तथा यही तो लेखक को लेखक बनाने वाली बात है।
अभी फीडबैक प्राप्त नहीं हुआ है, मैं प्रतीक्षा में हूँ।