Sunday, September 2, 2007

स्‍पर्श में अनुभव व स्‍मृति


पिछले सप्‍ताह के ऐसाइनमेंट में हमने गैर-दृश्‍य अनुभवों व स्‍मृति की चर्चा की थी और आपने जो अपने अनुभव दाखिल किए हैं उससे जाहिर हो गया है कि अपने अनुभवों के मामले में हम दृश्‍यात्‍मकता पर कितना आश्रित होते हैं। इस प्रयोग को जारी रखते हुए हम गैर दृश्‍य इंद्रीयानुभवों में से एक अर्थात सपश्र पर चर्चा करेंगे और उसी पर होगा इस सप्‍ताह का ऐसाइनमेंट- स्‍पर्श त्‍वचा से हासिल अनुभव है जो संवेद्य के निकटता की मांग करता है- खूब भौतिक निकटता। हम अपने हाथों या शरीर के अन्‍य अंगो से भौतिक जगत और अपने दोस्‍तो शत्रुओं के संपर्क में आते हैं। मास्‍टरजी का डंडा या खचाखच बस के अप्रिय स्‍पर्श समेत अनेक प्रिय अप्रिय स्‍पर्शों से गुजरे होंगे आप सब। इन्‍हें ही बस याद करें और फिर लिखने का प्रयास करें।

गतिविधि के स्‍तर पर करें यह कि कॉलेज कैंपस में ही इधर उधर घूमें और कुछ भौतिक वस्‍तुओं को छूएं, दोस्‍तों से हाथ मिलाएं, पुस्‍तकालय में जाएं और दशकों से रखी पुस्‍तकों (और उनकी धूल को) को स्‍पर्श करें- ये सभी स्पर्श आपसके कुछ कहेंगे दसे ही सुनें और फिर हमें सुनाएं।

ध्‍यान रहे पहले पहल ये स्‍पर्श कुछ न कहेंगे पर फिर अपनी कल्‍पना पर जोर डालें फिर आपस महसूस कर पाएंगे- कहेंगे तो अब भी आप खुद ही पर चूंकि यह सब इस स्‍पर्श के स्‍टीमुलस से ही उपजेगा इसलिए वही रचनात्‍मक होगा।

आपकी प्रतिक्रियाएं- आपकी जो प्रतिक्रियाएं प्राप्‍त हुई हैं वे रोचक भी है रचनात्‍मक भी। आपने पत्‍थर, पौधे, वर्षा की बूंदें, इमारत व मित्रों के स्‍पर्श जैसे अनुभव सामने रखे हैं, भाषागत कमियों को छोड़ दिया जाए तो ये प्रयास सराहनीय हैं।

5 comments:

Udan Tashtari said...

आजकल आप हैं कहाँ...बहुत कम दिख रहे हैं??

अफ़लातून said...

चिट्ठे द्वारा क्लास ? बढ़िया ।

Shastri JC Philip said...
This comment has been removed by the author.
Shastri JC Philip said...

पाचवीं मे मेरी अद्यापिका ने
जोर जबर्दस्ती लिखवाया था
एक निबंध.
काफी महीनों तक रहा मैं
नाराज उनसे.
मिट गया वह सब
पहली बार देखा अपना
छपा लेख, एवं अपना नाम
पुस्तक में.

"रचनात्मक लेखन" हो गया है
तब से मेरे जीवन का
अभिन्न अंग.
आभारी हैं हम उन के
जिन्होंने की थी जोर
जबर्दस्ती.
आभार उस मसिजीवी के
भी हैं
जो खुद जीते हैं "मसि" की
मदद से, एवं
जो हमे अब ले जा रहे हैं
रचनात्मकता की अगली
सीढी की ओर -- शास्त्री जे सी फिलिप

मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार !!

Anuradha Marwah said...

This is very impressive - an excellent creative writing exercise.